क्षय रोग ( राज्यक्ष्मा )के कारण और उपचार

क्षय रोग ( राज्यक्ष्मा )के कारण और उपचार
क्षय रोग ( राज्यक्ष्मा )के कारण और उपचार

क्षय रोग को हिन्दी में राज्यक्ष्मा और टी.बी. कहते हैं तथा एलोपैथी में इसे ट्यूबरक्लोसिस कहा जाता है। इस रोग के हो जाने पर रोगी व्यक्ति का शरीर कमजोर हो जाता है। क्षय रोग के हो जाने पर शरीर की धातुओं यानी रस, रक्त आदि का नाश होता है। 


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जब किसी व्यक्ति को क्षय रोग हो जाता है तो उसके फेफड़ों, हडि्डयों, ग्रंथियों तथा आंतों में कहीं इसका प्रभाव देखने को मिल सकता है।
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जब किसी स्त्री तथा पुरुष को क्षय रोग हो जाता है तो उसका वजन धीरे-धीरे घटने लगता है तथा थकान महसूस होने लगती है। इसके साथ-साथ रोगी को खांसी तथा बुखार भी हो जाता है। रोगी व्यक्ति को भूख लगना कम हो जाता है तथा उसके मुंह से कफ के साथ खून भी आने लगता है। इस रोग में किसी-किसी रोगी के शरीर पर फोड़े तथा फुंसियां होने लगती हैं।
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क्षय रोग तीन प्रकार का होता है-
1.फुफ्सीय क्षय
2.पेट का क्षय
3.अस्थि क्षयक्षय
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फुफ्फसीय क्षय रोग जल्दी पहचान में नहीं आता है। यह रोग शरीर के अन्दर बहुत दिनों तक बना रहता है। जब यह रोग बहुत ज्यादा गंभीर हो जाताहै तब इस रोग की पहचान होती है। क्षय (टी.बी.) रोग किसी भी उम्र की आयु के स्त्री-पुरुषों को हो सकता है लेकिन अलग-अलग रोगियों में इसकी अलग-अलग पहचान होती है।
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फुफ्फसीय क्षय रोग की पहचान-
1- क्षय रोग से पीड़ित रोगी को सिर में दर्द होता रहता है तथा रोगी व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होती है।
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2- पीड़ित रोगी की पाचन शक्ति खराब हो जाती है।
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3- फुफ्फसीय क्षय रोग से पीड़ित रोगी की हडि्डयां गलने लगती हैं तथा रोगी व्यक्ति के शरीर में आंख-कान की कोई बीमारी खड़ी होकर असली रोग पर पर्दा डाले रहती है।
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4- फुफ्फसीय क्षय रोग से पीड़ित रोगी की नाड़ी तेजी से चलने लगती है।
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5- फुफ्फसीय क्षय रोग से पीड़ित रोगी की जीभ लाल रंग की हो जाती है और रोगी व्यक्ति के शरीर का तापमान बढ़ जाता है।
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6- क्षय रोग से पीड़ित रोगी को नींद नहीं आती है तथा जब वह चलता है या सोता है तो उसका मुंह खुला रहता है।
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7- फुफ्फसीय क्षय रोग से पीड़ित रोगी के शरीर में बहुत अधिक कमजोरी आ जाती है तथा रोगी व्यक्ति का चेहरा पीला पड़ जाता है तथा रोगी व्यक्ति के चेहरे की चमक खो जाती है।
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8- रोगी व्यक्ति के शरीर से पसीना आता रहता है तथा उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है।
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9- फुफ्फसीय क्षय रोग से पीड़ित रोगी को कभी-कभी थूक के साथ खून भी आने लगता है। इसलिए रोगी व्यक्ति को अपने थूक का परीक्षण (जांच) समय-समय पर करवाते रहना चाहिए।
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10- क्षय रोग से पीड़ित रोगी को तेज रोशनी अच्छी नहीं लगती है तथा वह कुछ न कुछ बड़बड़ाता रहता हैं और उसके दांत किटकिटाते रहते हैं।

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11- फुफ्फसीय क्षय रोग से पीड़ित रोगी को भूख नहीं लगती है,भोजन का स्वाद अच्छा नहीं लगता है तथा उसके शरीर का वजन दिन-प्रतिदिन कम होता जाता है।
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12- फुफ्फसीय क्षय रोग से पीड़ित रोगी जब सुबह के समय में उठता है तो भोजन करने के बाद उसको खांसी आती है और उसके सीने में तेज दर्द होने लगता है।
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पेट का क्षय (टी.बी.):-इस क्षय रोग की पहचान भी बड़ी मुश्किल से होती है। इस रोग से पीड़ित रोगी के पेट के अन्दर गांठे पड़ जाती है।
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पेट का क्षय रोग के लक्षण-
1- पेट के क्षय (टी.बी.) रोग से पीड़ित रोगी को बार-बार दस्त आने लगते हैं।
2- रोगी व्यक्ति के शरीर में अधिक कमजोरी हो जाती है और उसके शरीर का वजन दिन-प्रतिदिन घटता रहता है।
3- इस रोग से पीड़ित रोगी के पेट में कभी-कभी दर्द भी होता है।
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हड्डी का क्षय रोग:-इस रोग के कारण रोगी की हड्डी बहुत अधिक प्रभावित होती है तथा हड्डी केआस-पास की मांसपेशियां भी प्रभावित होती हैं।
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हड्डी के क्षय रोगी की पहचान-इस रोग से पीड़ित रोगी के शरीर पर फोड़े-फुंसियां तथा जख्म हो जाते हैंऔर ये जख्म किसी भी तरह से ठीक नहीं होते हैं।
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क्षय रोग (टी.बी.) होने का कारण-
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क्षय रोग उन व्यक्तियों को अधिक होता है जिनके खान-पान तथा रहन-सहन का तरीका गलत होता है। इन खराब आदतों के कारण शरीर में विजातीय द्रव्य (दूषित द्रव्य) जमा हो जाते हैं और शरीर में धीरे-धीरे रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
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क्षय रोग ट्यूबरकल नामक कीटाणुओं के कारण होता है। यह कीटाणु ट्यूबरकल नामक कीटाणु फेफड़ों आदि में उत्पन्न होकर उसे खाकर नष्ट कर देते हैं। यह कीटाणु फेफड़ों,त्वचा, जोड़ों, मेरूदण्ड, कण्ठ, हडि्डयों, अंतड़ियों आदि शरीर के अंग को नष्ट कर देते हैं।
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क्षय रोग का शरीर में होने का सबसे प्रमुख कारण शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति का कम हो जाना है तथा शरीर में विजातीय द्रव्यों (दूषित द्रव्य) का अधिक हो जानाहै।
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क्षय रोग व्यक्ति को तब हो जाता है जब रोगी अपने कार्य करने की शक्ति से अधिक कार्य करता है।
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शौच तथा पेशाब करने के वेग को रोकने के कारण भी क्षय रोग हो जाता है।
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किसी अनुचित सैक्स संबन्धी कार्य करके वीर्य नष्ट करने के कारण भी क्षय रोग हो सकता है।
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अधिक गीले स्थान पर रहने तथा धूल भरे वातावरण में रहने के कारण भी क्षय रोग हो जाता है।
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प्रकाश तथा धूप की कमी के कारण तथा भोजन सम्बंधी खान-पान में अनुचित ढंग का प्रयोग करने के कारण भी क्षय रोग हो सकता है।
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अधिक विषैली दवाइयों का सेवन करने के कारण भी क्षय रोग हो सकता है।
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क्षय रोग की अवस्था 3 प्रकार की होती है-
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क्षय रोग की पहली अवस्था-क्षय रोग की अवस्था के रोगियों का उपचार हो सकता है। इस अवस्था के रोगियों को खांसी उठती है तथा खांसी के साथ कभी-कभी कफ भी आता है, तो कभी नहीं भी आता है तो कभी-कभी कफ में रक्त के छींटे दिखाई देते हैं। रोगी व्यक्ति का वजन घटने लगता है। इस अवस्था का रोगी जब थोड़ा सा भी कार्य करता है तो उसे थकावट महसूस होने लगती है और उसके शरीर से पसीना निकलने लगता है। पीड़ित रोगी को रात के समय में अधिक पसीना आता है और दोपहर के समय में बुखार हो जाता है तथा सुबह के समय में बुखार ठीक हो जाता है।
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क्षय रोग की दूसरी अवस्था:-क्षय रोग की दूसरी अवस्था से पीड़ित रोगी के शरीर में जीवाणु उसके फेफड़े में अपना जगह बना लेते हैं जिस कारण शरीर का रक्त और मांस नष्ट होने लगताहै। इस रोग से पीड़ित रोगी को दोपहर के बाद बुखार होने लगता है तथा उनके जबड़े फूल जाते हैं और उसके मुंह का रंग लाल हो जाता है। रोगी व्यक्ति को रात के समय में अधिक पसीना आता है। क्षय रोग की इस अवस्था से पीड़ित रोगी के पेट की बीमारी बढ़ जाती है तथा उसे सूखी खांसी होने लगती है। इस अवस्था के क्षय रोग से पीड़ित रोगी के कफ का रंग सफेद से बदलकर नीला हो जाता है और उसके कफ के साथ रक्त भी गिरना शुरू हो जाता है। रोगी व्यक्ति को उल्टियां भी होने लगती हैं तथा उसके शरीर का वजन कम हो जाता है। इस रोग से पीड़ित रोगी का मुंह चपटा हो जाता है तथा कफ बढ़ जाता है। रोगी के मुंह में सूजन हो जाती है। रोगी के बगलों में कभी-कभी सुइयां सी चुभती प्रतीत होती हैं। यह अवस्था बहुत ही कष्टदायक होती है।
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क्षय रोग की तीसरी अवस्था:-इस अवस्था के रोग से पीड़ित रोगी के दोनों फेफड़े खराब हो जाते हैं तथा रोगी का कण्ठ भी रोग ग्रस्त हो जाता है। रोगी व्यक्ति को दस्त लग जाते हैं। रोगी की नाक पतली हो जाती है तथा उसके नाखूनों के भीतर का भाग काला पड़ जाता है। रोगीकी कनपटियां अन्दर धंस जाती हैं। उसे अपने घुटने के निचले भाग में दर्द महसूस होता रहता है। पैरों की एड़ियों का ऊपरी भाग सूज जाता है तथा रोगी को खून की उल्टियां होने लगती हैं। इस अवस्था के क्षय रोग से पीड़ित रोगी की भूख खुल जाती है। इस अवस्था से पीड़ित रोगी सोचता है कि उसका रोग ठीक हो गया है। लेकिन इस अवस्था से पीड़ित रोगी बहुत कम ही बच पाते हैं।
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क्षय रोग के लिए एक विशेष सावधानी:-क्षय रोग (टी.बी.) एक प्रकार का छूत का रोग होता है। इसलिए इस रोग से पीड़ित रोगी के कपड़े, बर्तन तथा रोगी के द्वारा प्रयोग की जाने वाली चीजों को अलग रखना चाहिए, ताकि कोई अन्य उसे उपयोग में न ला सके क्योंकि यदि कोई व्यक्ति रोगी के कपड़े या उसके द्वारा उपयोग की जाने वाली चीजों का उपयोग करता है तो उसेभी क्षय रोग होने का डर रहता है।
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प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-
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क्षय रोग (टी.बी.) से पीड़ित रोगी को नारियल का पानी और सफेद पेठे का रस प्रतिदिन पीना चाहिए। जिसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
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क्षय रोग को ठीक करने के लिए अंगूर, अनार,अमरूद, हरी सब्जियों का सूप,खजूर, बादाम,मुनक्का, खरबूजे की गिरियां, सफेद तिलों का दूध, नींबू पानी,लहसुन, प्याज आदि का सेवन करना चाहिए, जिसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
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क्षय रोग (टी.बी.) को ठीक करने के लिए कई प्रकार के आसन हैं जिनको करने से क्षय रोग कुछ दिनों में ठीक होजाता है। ये आसन इस प्रकार हैं-गोमुखासन, मत्स्यासन,अत्तान मण्डूकासन,कटिचक्रासन, ताड़ासन, नौकासन,धनुरासनतथा मकरासन आदि।
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क्षय रोग से पीड़ित रोगी को प्रति दिन बकरी का दूध पीने के लिए देना चाहिए क्योंकि बकरी के दूध में क्षय रोग के कीटाणुओं को नष्ट करने की शक्ति होती है।
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प्रतिदिन 2 किशमिश तथा 2अखरोट खाने से क्षय रोग (टी.बी.) कुछ ही महीनों में ठीक हो जाता है।
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इस रोग से पीड़ित रोगी को अरबी, चावल, बेसन तथा मैदा की बनी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
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क्षय रोग (टी.बी.) से पीड़ित रोगी को सप्ताह में 1 बार कालीमिर्च, तुलसी,मुलहठी, लौंग तथा थोड़ी-सी अजवाइन को पानी में उबालकर पानी पीने को दें। इस काढ़े को हल्का गुनगुना सा पीने से रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
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क्षय रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में नाश्ता करने से पहले गहरी नीली बोतल का सूर्यतप्त जल 50 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन कम से कम 2-3 बार पीने से रोगी का रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
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क्षय रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में सूर्य के सामने पीठ के बल लेटकर अपनी छाती के सामने एक नीले रंग का शीशा रखकर उस प्रकाश को छाती पर पड़ने देना चाहिए। रोगी व्यक्ति को इस तरीके से लेटना चाहिए कि उसका सिर छाया में हो और छाती वाला भाग सूर्य की किरणके सामने हो। इसके बाद नीले शीशे को रोगी की छाती से थोड़ी ऊंचाई पर इस प्रकार रखना चाहिए कि सूर्य की किरणें नीले शीशे में से होती हुई रोगी की छाती पर पड़ें। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से क्षय रोग ठीक हो जाता है।
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क्षय रोग (टी.बी.) से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में खुली हवा में गहरी सांस लेनी चाहिए तथा कम से कम आधे घण्टे तक ताजी हवा में टहलना चाहिए।
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रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह के समय में कम से कम 15 मिनट तक हरी घास पर नंगे पैर चलना चाहिए।
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क्षय रोग (टी.बी.) से पीड़ित रोगी को अधिक पसीना आ रहा हो तो थोड़ी देर के लिए उसे रजाई ओढ़ा देनी चाहिए ताकि पसीना निकले और फिर 10 मिनट बाद ताजे स्वच्छ जल से उसे स्नान करना चाहिए।
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क्षय रोग (टी.बी.) से पीड़ित रोगी यदि नीम की छाया में प्रतिदिन कम से कम 1 घण्टे के लिए आराम करें तो उसे बहुत अधिक आराम मिलता है।
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कैलकेरिया-कार्ब-अगर रोगी की प्रकृति ठण्डी हो, रोगी का मोटापा काफी तेजी से बढ़ रहा हो, रोगी दूध पीता है तो वह उसे हजम नहीं होता, रोगी को हर समय खट्टी-खट्टी डकारें आती रहती हैं, रोगी को मांस नहीं पचता हो, शरीर में बहुत ज्यादा कमजोरी आ रही हो, पूरा शरीर हर समय पसीने से भीगा रहता हो। रोगी स्त्री का मासिकस्राव रुक गया हो ऐसे लक्षणों में उसे हर 6 घंटे के बाद कैलकेरिया-कार्ब औषधि देने से लाभ मिलता है।
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रोगी का बिल्कुल दुबला-पतला सा हो जाना, रोगी के कंधे झुके हुए रहना, रोगी की छाती में हर समय परेशानी रहने के साथ छाती बिल्कुल सपाट सी रहती है। रोगी हर समय थका-थका सा रहता है उसे अगर कोई काम करने को कहो तो वह उसे करता ही नहीं है। अगर रोगी को खांसी-जुकाम हो जाता है तो उसकी चिकित्सा करने से भी ठीक नहीं होती। इस तरह के लक्षणों में रोगी को टी.बी रोग की आशंका होने पर बैसीलीनम औषधि की 200 शक्ति, 1m या cm की मात्रा हर दूसरे या तीसरे सप्ताह में देना अच्छा रहता है।
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कैलि-कार्ब औषधि को टी.बी रोग की एक बहुत ही असरकारक और जरूरी औषधि माना जाता है। शायद टी.बी रोग का ऐसा कोई रोगी न हो जिसे इस रोग में कैलि-कार्ब दिए बिना ठीक किया गया हो। इस औषधि को बहुत सोच-समझकर दोहराना चाहिए क्योंकि यह बहुत ही प्रभावशाली औषधि होती है। यह औषधि उन रोगियों के लिए भी बहुत अच्छी रहती है जिन्हें प्लुरिसी रोग(फेफड़ों की परत में पानी भर जाना)होने के बाद टी.बी का रोग हो जाता है। रोगी की छाती में ऐसा दर्द उठता है जैसे कि किसी ने उसमें सुई घुसा दिया हो, रोगी को थूक थक्को के रूप में आता है, पैरों के तलवों पर जरा सा स्पर्श भी रोगी को कष्ट देने लगता है, रोगी का गला बैठ जाता है, सुबह के समय रोगी को बहुत तेज खांसी उठती है, जिसमें थोड़ी सी खांसी में ही बलगम निकल जाता है और उसमें थोड़ा सा खून भी मिला होता है। इस रोग के लक्षण सुबह के 3-4 बजे तेज होते हैं। रोगी की आंख की पलक के ऊपर सूजन आना भी टी.बी. रोग का एक महत्वपूर्ण लक्षण है। इन सब टी.बी. रोग के लक्षणों में कैलि-कार्ब औषधि रोगी को जीवनदान देने का काम करती है।
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आर्सेनिक आयोडियम औषधि हर प्रकार के टी.बी रोग में बहुत ही खास भूमिका निभाती है। रोगी को ठण्ड लगने के कारण जुकाम हो जाता है, वजन दिन पर दिन कम ही होता रहता है। ऐसे रोगी जिनको अभी-अभी टी.बी रोग हुआ ही हो, दोपहरके समय रोगी का बुखार तेज हो जाता है, पसीना बहुत ही ज्यादा आता हो, शरीर कमजोर होता जाता है। इस तरह के लक्षणों में आर्सेनिक आयोडियम बहुत ही असरकारक रहती है। रोगी को टी.बी रोग में इस औषधि की 3x की 0,.26 ग्राम की मात्रा रोजाना दिन में 3 बार देनी चाहिए। कभी-कभी इस औषधि की उल्टी प्रतिक्रिया होने से रोगी के पेट में दर्द भी हो सकता है और दस्त आने लगते हैं। ऐसी हालत में रोगी को यह औषधि देना बन्द कर देना चाहिए।
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टी.बी. रोग सबसे पहले रोगी के फेफड़ों पर हमला करता है। रोगी को हर समय थोड़ी-थोड़ी सी खांसी होती रहती है। इस तरह की खांसी कभी-कभी तर भी हो जाती है और रोगी का बलगम अपने आप ही निकल जाता है। इस बलगम को कभी-कभी रोगी पेट में भी निगल जाता है। जिससे रोगी को आंतों की टी.बी. हो जाती है।
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रोगी को टी.बी. का बुखार होने पर हर 1 धंटे के बाद आर्सेनिक आयोडाइड औषधि की 3x मात्रा देने से बुखार काबू में रहता है। इस औषधि को रोगी को खाली पेट नहीं देनी चाहिए बल्कि भोजन कराने के बाद देनी चाहिए।
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टी.बी. के रोगी को हर 2 घंटे के बाद लगभग 14 मिलीलीटरसे 28 मिलीलीटर जैतून का तेल सेवन कराने से उसके शरीर का वजन कुछ ही समय में बढ़ने लगता है। अगर रोगी कोई दूसरी औषधि सेवन करता है तो भी इस तेल का सेवन कियाजा सकता है। अगर इस तेल में थोड़ा सा नमक मिलाकर सेवन किया जाए तो यह शरीर की पाचन क्रिया को भी तेज करता है।
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टी.बी. के रोग में रोगी को बहुत ज्यादा पसीना आता है तो उसे जैबोरेण्डी औषधि की 2x मात्रा देना लाभकारी रहता है।
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यदि टी.बी. के रोग में रोगी को भोजन देखते ही जी खराब हो जाता है (अरुचि) का लक्षण नजर आता है तो ऐसे में रोगी को रोजाना 3 बार खुराक 3 बूंद सेवन कराने से लाभ मिलता है।

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