बरगद के उपयोग औषधि के रूप में

बरगद के उपयोग औषधि के रूप में
बरगद के उपयोग औषधि के रूप में

==================बरगद========================
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बरगद बहुवर्षीय विशाल वृक्ष है। यह एक स्थलीय द्विबीजपत्री एंव सपुष्पक वृक्ष है। इसका तना सीधा एंव कठोर होता है। इसकी शाखाओं से जड़े निकलकर हवा में लटकती हैं तथा बढ़ते हुए जमीन के अंदर घुस जाती हैं एंव स्तंभ बन जाती हैं। इन जड़ों को बरोह या प्राप जड़ कहते हैं। इसका फल छोटा गोलाकार एंव लाल रंग का होता है। इसके अन्दर बीज पाया जाता है। इसका बीज बहुत छोटा होता है किन्तु इसका पेड़ बहुत विशाल होता है। इसकी पत्ती चौड़ी, एंव लगभग अण्डाकार होती है। इसकी पत्ती, शाखाओं एंव कलिकाओं को तोड़ने से दूध जैसा रस निकलता है जिसे लेटेक्स कहा जाता है।
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बरगद (अंग्रेज़ी:Banyan Tree) भारत का राष्‍ट्रीय वृक्ष है। इसे 'बर', 'बट' या 'वट' भी कहते हैं। बरगद 'मोरेसी' या 'शहतूत' कुल का पेड़ है। इसका वैज्ञानिक नाम 'फ़ाइकस वेनगैलेंसिस (Ficus bengalensis) और अंग्रेज़ी नाम 'बनियन ट्री' है। हिंदू लोग इस वृक्ष को पूजनीय मानते हैं। इसके दर्शन स्पर्श तथा सेवा करने से पाप दूर होता है तथा दु:ख और व्याधि नष्ट होती है। अत: इस वृक्ष के रोपण और ग्रीष्म काल में इसकी जड़ में पानी देने से पुण्य संचय होता है, ऐसा माना जाता है। उत्तर से दक्षिण तक समस्त भारत में वट वृक्ष उत्पन्न होते देखा जाता है। इसकी शाखाओं से बरोह निकलकर ज़मीन पर पहुंचकर स्तंभ का रूप ले लेती हैं। इससे पेड़ का विस्तार बहुत ज़ल्द बढ़ जाता है। बरगद के पेड़ को मघा नक्षत्र का प्रतीक माना जाता है। मघा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति बरगद की पूजा करते है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति अपने घर में बरगद के पेड़ को लगाते है।
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=============पौराणिक मान्यता=====================
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भारत में बरगद के वृक्ष को एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इस वृक्ष को 'वट' के नाम से भी जाना जाता है। यह एक सदाबहार पेड़ है, जो अपने प्ररोहों के लिए विश्वविख्यात है। इसकी जड़ें ज़मीन में क्षैतिज रूप में दूर-दूर तक फैलकर पसर जाती है। इसके पत्तों से दूध जैसा पदार्थ निकलता है। यह पेड़ 'त्रिमूर्ति' का प्रतीक है। इसकी छाल में विष्णु, जड़ों में ब्रह्मा और शाखाओं में शिव विराजते हैं। अग्निपुराण के अनुसार बरगद उत्सर्जन को दर्शाता है। इसीलिए संतान के लिए इच्छित लोग इसकी पूजा करते हैं। इस कारण से बरगद काटा नहीं जाता है। अकाल में इसके पत्ते जानवरों को खिलाए जाते हैं। अपनी विशेषताओं और लंबे जीवन के कारण इस वृक्ष को अनश्‍वर माना जाता है। इसीलिए इस वृक्ष को अक्षयवट भी कहा जाता है। लोक मान्यता है कि बरगद के एक पेड़ को काटे जाने पर प्रायश्चित के तौर पर एक बकरे की बलि देनी पड़ती है। वामनपुराण में वनस्पतियों की व्युत्पत्ति को लेकर एक कथा भी आती है। आश्विन मास में विष्णु की नाभि से जब कमल प्रकट हुआ, तब अन्य देवों से भी विभिन्न वृक्ष उत्पन्न हुए। उसी समय यक्षों के राजा 'मणिभद्र' से वट का वृक्ष उत्पन्न हुआ।
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बरगद को साक्षात शिव भी कहा गया है। बरगद को देखना शिव के दर्शन करना है।
हिंदू धर्मानुसार पांच वटवृक्षों का महत्व अधिक है। अक्षयवट, पंचवट, वंशीवट, गयावट और सिद्धवट के बारे में कहा जाता है कि इनकी प्राचीनता के बारे में कोई नहीं जानता। संसार में उक्त पांच वटों को पवित्र वट की श्रेणी में रखा गया है। प्रयाग में अक्षयवट, नासिक में पंचवट, वृंदावन में वंशीवट, गया में गयावट और उज्जैन में पवित्र सिद्धवट है।
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====================बरगद के लाभ==================
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बरगद का दूध चोट, मोच और सूजन पर दिन में 2-3 बार लगाने और मालिश करने से फायदा होता है।
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बिवाई की फटी हुई दरारों पर बरगद का दूध भरकर मालिश करते रहने से कुछ ही दिनों में वह ठीक हो जाती है।
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नाभि में बरगद़ का दूध लगाने और एक बताशे में 2-3 बूंद डालकर दिन में 2-3 बार रोगी को खिलाने से सभी प्रकार के दस्तों में लाभ होता है।
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बरगद का दूध अलसी के तेल में मिलाकर मालिश करने से कमर दर्द से छुटकरा मिलता है।
कमर दर्द में बरगद के पेड़ का दूध लगाने से लाभ होता है।
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सूर्योदय से पहले बरगद़ के पत्ते तोड़कर टपकने वाले दूध को एक बताशे में 3-4 बूंद टपकाकर खा लें। एक बार में ऐसा प्रयोग 2-3 बताशे खाकर पूरा करें। हर हफ्ते 2-2 बूंद की मात्रा बढ़ाते हुए 5-6 हफ्ते तक यह प्रयोग जारी रखें। इसके नियमित सेवन से शीघ्रपतन, वीर्य का पतलापन, स्वप्नदोष, प्रमेह, खूनी बवासीर, रक्त प्रदर आदि रोग ठीक हो जाते हैं और यह प्रयोग बलवीर्य वृद्धि के लिए भी बहुत लाभकारी है।
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बरगद की जटाओं के बारीक रेशों को पीसकर बने लेप को रोजाना सोते समय स्तनों पर मालिश करके लगाते रहने से कुछ हफ्तों में स्तनों का ढीलापन दूर हो जाता है।
बरगद की जटा के बारीक अग्रभाग के पीले व लाल तन्तुओं को पीसकर लेप करने से स्तनों के ढीलेपन में फायदा होता है।
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बरगद के पके फल को छाया में सुखाकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को बराबर मात्रा की मिश्री के साथ मिलाकर पीस लें। इसे एक चम्मच की मात्रा में सुबह खाली पेट और सोने से पहले एक कप दूध से नियमित रूप से सेवन करते रहने से कुछ हफ्तों में यौन शक्ति में बहुत लाभ मिलता है।
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बरगद के पत्तों से बना काढ़ा 50 मिलीलीटर की मात्रा में 2-3 बार सेवन करने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है। यह काढ़ा सिर के भारीपन, नजला, जुकाम आदि में भी फायदा करता है।
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दही के साथ बड़ को पीसकर बने लेप को जले हुए अंग पर लगाने से जलन दूर होती है।
जले हुए स्थान पर बरगद की कोपल या कोमल पत्तों को गाय के दही में पीसकर लगाने से जलन कम हो जाती है।
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बरगद के फल के बीज को बारीक पीसकर 1 या 2 ग्राम तक सुबह के समय गाय के दूध के साथ मिलाकर रोज खाने से बार-बार पेशाब आने का रोग ठीक हो जाता है।
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3 से 6 ग्राम बरगद के कोमल पत्तों को दूध में पीसकर दिन में तीन बार रोगी को देने से रक्त्तपित्त का रोग ठीक हो जाता है।
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प्रदर रोग में बरगद के पेड़ का दूध 5-10 बूंद दिन में 4 बार देने से प्रदर की रोगी स्त्री को देने से आराम आता है।
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100 ग्राम ताजे बड़ की छाल को छाया में सुखाकर पीसकर और छानकर 5-5 ग्राम कच्चे दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से प्रदर रोग में लाभ मिलता है।
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बरगद के पत्तों की 20 ग्राम राख को 100 मिलीलीटर अलसी के तेल में मिलाकर मालिश करते रहने से सिर के बाल उग आते हैं।
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बरगद के साफ कोमल पत्तों के रस में, बराबर मात्रा में सरसों के तेल को मिलाकर आग पर पकाकर गर्म कर लें, इस तेल को बालों में लगाने से बालों के सभी रोग दूर हो जाते हैं।
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10 ग्राम बरगद की छाल, कत्था और 2 ग्राम कालीमिर्च इन तीनों को खूब बारीक पाउडर बनाकर मंजन करने से दांतों का हिलना, मैल, बदबू आदि रोग दूर होकर दांत साफ हो जाते हैं।
दांत के दर्द पर बरगद का दूध लगाने से दर्द दूर हो जाता है। इसके दूध में एक रूई की फुरेरी भिगोकर दांत के छेद में रख देने से दांत की बदबू दूर होकर दांत ठीक हो जाते हैं तथा दांत के कीड़े भी दूर हो जाते हैं।
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अगर किसी दांत को निकालना हो तो उस दांत पर बरगद का दूध लगाकर दांत को आसानी से निकाला जा सकता है।
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बरगद के पेड़ की जटा से मंजन करने से दांतों के कीड़े खत्म हो जाते हैं। बरगद की कोमल लकड़ी की दातुन से पायरिया खत्म हो जाता है।
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3 ग्राम बरगद की जटा के बारीक पाउडर को दूध की लस्सी के साथ पिलाने से नाक से खून बहना बंद हो जाता है।
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नाक में बरगद के दूध की 2 बूंदें डालने से नकसीर (नाक से खून बहना) ठीक हो जाती है।
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बरगद के कड़े हरे शुष्क पत्तों के 10 ग्राम दरदरे चूर्ण को 1 लीटर पानी में पकायें, चौथाई बच जाने पर इसमें 1 ग्राम नमक मिलाकर सुबह-शाम पीने से हर समय आलस्य और नींद का आना कम हो जाता है।
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गले में गांठ होने पर बरगद के दूध का लेप करने से लाभ होता है।
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बरगद के 25 ग्राम कोमल पत्तों को 200 मिलीलीटर पानी में घोटकर खूनी बवासीर के रोगी को पिलाने से 2-3 दिन में ही खून का बहना बंद होता है। बवासीर के मस्सों पर बरगद के पीले पत्तों की राख को बराबर मात्रा में सरसों के तेल में मिलाकर लेप करते रहने से कुछ ही समय में बवासीर ठीक हो जाती है।
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10 ग्राम बरगद की कोपलों को 100 मिलीलीटर बकरी के दूध में बराबर पानी मिलाकर पका लें। पकने पर जब सिर्फ दूध रह जायें तो इसे छानकर खाने से रक्तपित्त, खूनी बवासीर में लाभ होता है।
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बरगद की सूखी लकड़ी को जलाकर इसके कोयलों को बारीक पीसकर सुबह-शाम 3 ग्राम की मात्रा में ताजे पानी के साथ रोगी को देते रहने से खूनी बवासीर में फायदा होता है। कोयलों के पाउडर को 21 बार धोये हुए मक्खन में मिलाकर मरहम बनाकर बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से बिना किसी दर्द के दूर हो जाते हैं।
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दस्त के साथ या पहले खून निकलता है। उसे खूनी दस्त कहते हैं। इसे रोकने के लिए 20 ग्राम बरगद की कोपलें लेकर पीस लें और रात को पानी में भिगोंकर सुबह छान लें फिर इसमें 100 ग्राम घी मिलाकर पकायें, पकने पर घी बचने पर 20-25 ग्राम तक घी में शहद व शक्कर मिलाकर खाने से खूनी दस्त में लाभ होता है।
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बरगद के दूध को नाभि के छेद में भरने और उसके आसपास लगाने से अतिसार (दस्त) में लाभ होता है।
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बरगद के दूध की पहले दिन 1 बूंद 1 बतासे डालकर खायें, दूसरे दिन 2 बतासों पर 2 बूंदे, तीसरे दिन 3 बतासों पर 3 बूंद ऐसे 21 दिनों तक बढ़ाते हुए घटाना शुरू करें। इससे प्रमेह और स्वप्न दोष दूर होकर वीर्य बढ़ने लगता है।
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प्रमेह रोग में बरगद की ताजी छाल के बारीक पाउडर में चीनी मिलाकर 4 ग्राम की मात्रा में ताजे पानी के साथ सेवन करने से लाभ होता है। बार-बार वीर्य के निकलने पर इसके अंदर चीनी न मिलायें।
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10-20 ग्राम बरगद के पके फलों के चूर्ण को मिश्री मिलाये हुए दूध के साथ खाने से प्रमेह रोग में फायदा होता है। यह पौष्टिक व धातुवर्धक होता है।
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20 ग्राम बरगद के कोमल पत्तों को 100 से 200 मिलीलीटर पानी में घोटकर रक्तप्रदर वाली स्त्री को सुबह-शाम पिलाने से लाभ होता है। स्त्री या पुरुष के पेशाब में खून आता हो तो वह भी बंद हो जाता है।
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3 से 5 ग्राम बरगद की कोपलों का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम खाने से प्रमेह व प्रदर रोग खत्म होता है।बरगद के दूध की 5-7 बूंदे बताशे में भरकर खाने से रक्तप्रदर मिट जाता है।
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बरगद की नर्म शाखाओं के फांट में शक्कर या बतासा मिलाकर खाने से खून की उल्टी बंद हो जाती है।
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20 ग्राम बरगद के हरे पत्ते, 7 लौंग को पानी में घोंटकर रोगी की इच्छानुसार पिलाने से जी मिचलाना ठीक हो जाता है।
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बरगद की जटा के साथ अर्जुन की छाल, हरड़, लोध्र व हल्दी को समान मात्रा में लेकर पानी में पीसकर लेप लगाने से उपदंश के घाव भर जाते हैं।बरगद का दूध उपदंश के फोड़े पर लगा देने से वह बैठ जाती है।बड़ के पत्तों की भस्म (राख) को पान में डालकर खाने से उपदंश रोग में लाभ होता है।
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9 ग्राम बरगद की जटा का बारीक चूर्ण, 2-2 ग्राम कलमी शीरा, श्वेतजीरा, छोटी इलायची के बीज का बारीक चूर्ण एक साथ मिलाकर पानी में घोटकर एक ही गोली बनाकर सुबह-शाम गाय ताजे दूध के साथ सेवन करने से मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) व सुजाक रोग में लाभ होता है।
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4 ग्राम बरगद की छाया में सुखाई हुई छाल के चूर्ण को दूध की लस्सी के साथ खाने से गर्भपात नहीं होता है।
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बरगद की छाल के काढ़े में 3 से 5 ग्राम लोध्र की लुगदी और थोड़ा सा शहद मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करने से गर्भपात में जल्द ही लाभ होता है। योनि से रक्त का स्राव यदि अधिक हो तो बरगद की छाल के काढ़ा में छोटे कपड़े को भिगोकर योनि में रखें। इन दोनों प्रयोग से श्वेत प्रदर में भी फायदा होता है।
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बरगद के 2 कोमल पत्तों को 250 मिलीलीटर गाय के दूध में डालकर उसमें बराबर मात्रा में थोड़ा पानी डालकर पकायें। पकने पर जब सिर्फ दूध ही रह जाये तो छानकर पीने से गर्भपात में लाभ होता है।
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बरगद की कोपलों के रस में फोया भिगोकर योनि में रोज 1 से 15 दिन तक रखने से योनि का ढीलापन दूर होकर योनि टाईट हो जाती है।
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पुष्य नक्षत्र और शुक्ल पक्ष में लाये हुए बरगद की कोपलों का चूर्ण 6 ग्राम की मात्रा में मासिक-स्राव काल में प्रात: पानी के साथ 4-6 दिन खाने से स्त्री अवश्य गर्भधारण करती है, या बरगद की कोंपलों को पीसकर बेर के जितनी 21 गोलियां बनाकर 3 गोली रोज घी के साथ खाने से भी गर्भधारण करने में आसानी होती है।
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बरगद के पेड़ के फल को सुखाकर बारीक पाउडर लेकर मिश्री के बारीक पाउडर मिला लें। रोजाना सुबह इस पाउडर को 6 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सेवन से वीर्य का पतलापन, शीघ्रपतन आदि रोग दूर होते हैं।
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बरगद के पके हुए फल और पीपल के फल को सुखाकर बारीक चूर्ण बना लें इस 25 ग्राम चूर्ण को 25 ग्राम घी में भूनकर, हलवा बना लें इसे सुबह-शाम खाने से ऊपर से बछड़े वाली गाय का दूध पीने से विशेष बल वृद्धि होती है। अगर स्त्री-पुरुष दोनों खायें तो रस वीर्य शुद्ध होकर सुन्दर सन्तान जन्म लेती है।
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बरगद की सूखी कोपलों के पाउडर में मिश्री मिलाकर 7 दिन तक रोज बिना खाना-खाये ही 7 से 10 ग्राम तक दूध की लस्सी के संग खायें इससे वीर्य का पतलापन मिटता है।
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बरगद की छाल जो छाया में सुखाई गई हो उसके बारीक पाउडर में दुगनी चीनी या मिश्री मिला लें, इसे 6 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम खाने से याददाश्त शक्ति बढ़ती है। इस प्रयोग में खट्टे पदार्थों से परहेज रखें।
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घाव में कीड़े हो गये हो, बदबू आती हो तो बरगद की छाल के काढ़े से घाव को रोज धोने से इसके दूध की कुछ बूंदे दिन में 3-4 बार डालने से कीड़े खत्म होकर घाव भर जाते हैं।
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साधारण घाव पर बरगद के दूध को लगाने से घाव जल्दी अच्छे हो जाते हैं।
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अगर घाव ऐसा हो जिसमें कि टांके लगाने की जरूरत पड़ जाती है। तो ऐसे में घाव के मुंह को पिचकाकर बरगद के पत्ते गर्म करके घाव पर रखकर ऊपर से कसकर पट्टी बांधे, इससे 3 दिन में घाव भर जायेगा, ध्यान रहे इस पट्टी को 3 दिन तक न खोलें।
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फोड़े-फुन्सियों पर इसके पत्तों को गर्मकर बांधने से वे शीघ्र ही पककर फूट जाते हैं।
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बरगद के पत्तों को जलाकर उसकी भस्म (राख) में मोम और घी मिला कर मलहम जैसा बनाकर घावों में लगाने से जल्दी आराम होता है।
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बारिश के महीनों में पानी में ज्यादा रहने से अगुंलियों के बीच में जख्म से हो जाते हैं, उन पर बरगद का दूध लगाने से जख्म जल्दी अच्छे हो जाते हैं।
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बरगद के दूध में सांप की केंचुली की भस्म (राख) मिलाकर उसमें पतले कपड़े या रूई की बत्ती को भिगोकर नाड़ी के घाव में रखने से उन्हें 10 दिन में लाभ होता है। रसौली की शुरुआत अवस्था में इसके लेप से जल्द लाभ होता है।
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रात के समय बरगद के दूध का लेप करने तथा कोढ़ पर बरगद की छाल का चूर्ण बांधने से 7 दिन में ही कोढ़ और रोमक शांत हो जाता है।
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बरगद के पत्तों पर घी चुपड़कर बांधने से शोथ (सूजन) दूर हो जाती है।
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लगभग 5 ग्राम की मात्रा में बड़ के दूध को सुबह-सुबह पीने से आंव का दस्त समाप्त हो जाता है।
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बरगद के पत्तों के दूध की थोड़ी-सी बूंदे कान में डालने से कान के कीड़े मर जाते हैं और कान का दर्द दूर हो जाता है।
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चोट, मोच की दर्द में बरगद का दूध अलसी के तेल में मिलाकर मालिश करने से दर्द कम होता है। यह दूध एक अच्छी औषधि का काम करती है जो दर्द को दूर करती है।
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बरगद का दूध लगाने से गिल्टी बिल्कुल नष्ट हो जाती है।
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बरगद की नई कोमल बरोहें को पानी में पीसकर स्तनों पर लेप करने से स्तन कठोर हो जाते हैं।
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बरगद के फल छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें। गाय के दूध के साथ यह 1 चम्मच चूर्ण खाने से वीर्य गाढ़ा व बलवान बनता है।
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1 भाग बरगद की कोंपल (मुलायम पत्तियां), 1 भाग गूलर की छाल और 2 भाग चीनी मिलाकर चूर्ण बना लें। 21 दिन तक 10 ग्राम चूर्ण रोजाना दूध के साथ खाने से वीर्य गाढ़ा होता है।
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बरगद और पीपल के पेड़ की हरी छाल को उतार कर पीसकर गुनगुना ही स्तनों पर लगाने से स्तनों के रोग ठीक हो जाते हैं।
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गठिया के दर्द में बरगद के दूध में अलसी का तेल मिलाकर मालिश करने से लाभ मिलता है।
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बरगद के दूध में सांप की केंचुली की राख मिलाकर और उसमें रूई भिगोकर नासूर पर रखें। दस दिन तक इसी प्रकार करने से नासूर में लाभ मिलता है।
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बरगद के चूर्ण का लेप करने से शंखक नामक सिर का रोग ठीक हो जाता है।
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दमा के रोगी को बड़ के पत्ते जलाकर उसकी राख 240 मिलीग्राम पान में रखकर खाने से लाभ मिलता है।
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बरगद के दूध का लेप करने से कण्ठमाला रोग (गले की गांठे) ठीक हो जाता है।
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बरगद की जड़ों में एंटी-ऑक्सीडेंट सबसे ज्यादा पाए जाते हैं। अपने इसी गुण के कारण यह वृद्धावस्था की ओर ले जाने वाले कारकों को दूर कगरती है। हवा में तैरती ताजी जड़ों के सिरों को काटकर पानी में कुचल कर रस को चेहरे पर लगाएं। इससे चेहरे से झुर्रियां दूर हो जाती हैं।

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