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चुम्बक चिकित्सा के गुण व प्रकार एवम शरीर पर असर |
जब हम चुम्बक के इतिहास की ओर देखते हैं तो हमें पता चलता है कि प्राचीन काल के मनुष्यों ने इस धरती पर कई ऐसे पदार्थों की खोज की है जो मनुष्यों के शरीर तथा उनके कार्यो को प्रभावित करते हैं और मनुष्यों के जीवन तथा उनके रोगों पर विशेष प्रभाव डालते हैं। मनुष्यों द्वारा एक ऐसे ही पदार्थ की खोज हुई जो चुम्बक कहलाता है।
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हमारे पूर्वजों को इस चुम्बक में ऐसी शक्ति दिखाई दी कि यह पदार्थ लोहे से बने पदार्थो, लोह-द्रव्यों तथा लोहा जैसे पदार्थ आदि को अपनी शक्ति से अपनी ओर आकर्षित करता है। बाद में लोगों को यह भी पता लगा कि हमारे शरीर में पाये जाने वाले सभी तरल पदार्थ तथा अर्ध तरल पदार्थ जिनमें लोहे के कुछ कण पाये जाते हैं, चुम्बक उनको भी प्रभावित करता है। पुराने समय की विचार धारा के अनुसार यह भी पता लग गया कि सभी प्रकार के लौह तत्व-द्रव्य पदार्थो पर चन्द्रमा का सीधा प्रभाव पड़ता है। इसके कारण मनुष्य के मस्तिष्क पर भी तेज प्रभाव पड़ता है। कई वैज्ञानिक परीक्षणों से यह भी पता लगा कि चुम्बक पदार्थों से मनुष्यों के कई प्रकार के रोग ठीक किये जा सकते हैं।शरीर को स्वस्थ रखने तथा रोग को दूर करने के बारे में हमारे प्राचीन लोगों की धारणा बहुत अच्छी थी।
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कुछ वैज्ञानिकों ने यह भी पता लगाया कि सूर्य की किरणें धरती पर पाये जाने वाले चुम्बक को अस्त-व्यस्त कर देती हैं जिसके कारण अनेक जैविक परिवर्तन होते हैं तथा सूर्य की किरणें सौरवायु तथा सौरमण्डल का अन्र्तग्राही चुम्बक क्षेत्र सूर्य की क्रिया और धरती के चक्कर के मध्य कड़ी के रूप में काम करती है।कई वैज्ञानिक परीक्षणों के आधार पर यह भी पता चला है कि मनुष्य के शरीर के विभिन्न अंग शरीर में होने वाले कई प्रकार की क्रियाओं के कारण अस्थिर चुम्बक-क्षेत्रों की उत्पत्ति करते हैं। कहने का अर्थ यह है कि मनुष्य के शरीर की प्रत्येक कोशिका में एक विशेष प्रकार का चुम्बकीय प्रभाव होता है जो मनुष्य के शरीर तथा बाहरी जलवायु के मध्य एक कड़ी का कार्य करता है। विभिन्न परीक्षणों से यह भी पता चला है कि चुम्बक के उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुवों में शरीर के विभिन्न रोगों को ठीक करने की शक्ति पाई जाती है। प्रमाणों के आधार पर दक्षिणी ध्रुवों को जकड़न,सूजन तथा दर्द आदि रोगों को ठीक करने के लिए उपयोग किया जाता है जबकि उत्तरी ध्रुव को मूल रुप से संक्रमण रोगों में प्रयोग किया जाता है।
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आज संसार में वैज्ञानिक अनेक रोगों का इलाज करने के लिए ऐसी चिकित्सा प्रणाली की खोज कर रहे हैं कि जो अपने आप में बहुत ही आसान है तथा उसका प्रभाव भी काफी अच्छा है। अब वैज्ञानिक ऐसे पदार्थों की खोज कर रहे हैं जो प्रकृति द्वारा प्राप्त हो तथा उनसे रोगों का इलाज हो सके। वर्तमान समय में वैज्ञानिकों ने ऐसा एक इलाज खोज निकाला है जो चुम्बक चिकित्सा कहलाता है। इस चिकित्सा प्रणाली में चुम्बक की शक्ति द्वारा रोगी का इलाज किया जाता है।
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चुम्बक-कठोर धातु का वह टुकड़ा जो लोहे की कीलों, आलपीनों तथा लोहे की बनी चीजों को अपनी ओर आकर्षित करता है, चुम्बक कहलाता है।
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चुम्बकीय पदार्थ-चुम्बक जिस किसी भी पदार्थ को अपनी ओर आकर्षित करता है उसे चुम्बकीय पदार्थ कहा जाता है।
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चुम्बकीय क्षेत्र-चुम्बकीय पदार्थ को चुम्बक जिस दूरी से अपनी ओर खींचता है उस दूरी को ही चुम्बकीय पदार्थ का क्षेत्र कहा जाता है अर्थात चुम्बक तथा चुम्बकीय पदार्थ की बीच की दूरी को चुम्बकीय क्षेत्र कहा जाता है।
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चुम्बक के प्रकार-
1. प्राकृतिक चुम्बक-प्राचीन समय में एशिया माइनर में मैग्नीशिया नामक स्थान पर कुछ काले पत्थरों की खोज की गई जिनका नाम इसी स्थान के नाम पर मैग्नेट रखा गया। मैग्नेट शब्द अंग्रेजी में है और हिन्दी में इसका अर्थ चुम्बक होता है। चुम्बक को लाडस्टोन या नेचुरल मैग्नेट के रुप में भी जाना जाता है। जब इन पत्थरों को स्वतन्त्र रुप से हवा में लटका दिया जाये तो ये पत्थर अपनी पहले की स्थिति में आ जाते हैं तथा एक निश्चित दिशा की ओर संकेत करते हैं इसलिए इन पत्थरों को लोडस्टोन कहा जाता है। इन पत्थरों में एक विशेष प्रकार का गुण भी पाया जाता है जो लोहे तथा ऑक्सीजन के रूप में एक ऑक्साइड का निर्माण करता है। इसका वैज्ञानिक भाषा में आणुविक सूत्र- Fe3O4 है।
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2. मनुष्यों द्वारा बनाया गया चुम्बक-मानव द्वारा बनाए गए चुम्बकों का अब प्राकृतिक चुम्बकों से ज्यादा प्रयोग होने लगा है क्योंकि इन्हे जरूरत अनुसार आकार देकर प्रयोग में लाया जा सकता है। उपयोगिता के अनुसार इनकी पॉवर को भी कम या ज्यादा किया जा सकता है। कुछ चुम्बक छड़ों के आकार के होते हैं तो कुछ घोड़े की खुरों के आकार के, कुछ सुई के आकार के होते हैं और कुछ नक्षत्र मंडल के समान गोलाकार होते हैं, जिसका चुम्बकीय क्षेत्र एक ही दिशा में होता है।
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मानव निर्मित चुम्बक को दो भागों में बांटा जा सकता है-
1. स्थायी चुम्बक-स्थायी चुम्बक वे चुम्बक होते हैं जो अपनी आकर्षण शक्ति को बहुत लम्बे समय तक धारण किये हुए रहते हैं। स्थायी चुम्बकों का उपयोग विद्युत मापी यंत्रों, ध्वनि विस्तार कों, टेलीफोन के ध्वनिग्राही भागों, रेडियों तथा बिजली की डी सी औरचुम्बक चिकित्सा आदि में किया जाता है।
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2. अस्थायी चुम्बक-अस्थायी चुम्बक वे चुम्बक होती है जिनकी आकर्षण शक्ति को अपनी इच्छानुसार कम या अधिक किया जा सकता है। ऐसे चुम्बकों की उपयोगिता बहुत अधिक होती है। इन चुम्बकों का उपयोग विद्युत चुम्बकों के रूप में टेलीग्राफिक मशीनों, बिजली के क्रेनों तथा दरवाजों पर लगाई जाने वाली घंटियों और बिजली के अनेक यंत्रों आदि में किया जाता है। इन चुम्बकों के विभिन्न गुणों के आधार पर इन्हें कई प्रकार के यंत्रों में में उपयोग किया जाता है।
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अन्य प्रकार के चुम्बक-
1. सेरामिक चुम्बक-यह अर्धचन्द्राकार आकार के रुप में पाए जाने वाले कम शक्ति के चुम्बक होते हैं। इन चुम्बकों का प्रयोग चुम्बक चिकित्सा के अनुसार छोटे बच्चों की बीमारियों और अन्य प्रकार के रोगों को ठीक करने में किया जाता है जैसे-बौनापन, आंख आना,टांसिलों की जलन,नींद न आना आदि।
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2. मध्यम शक्ति के चुम्बक-इस प्रकार के चुम्बकों में सेरामिक चुम्बक से अधिक शक्ति पाई जाती है। इन चुम्बकों का प्रयोग बच्चों की हथेलियों तथा उनके पैरों के तलुवों आदि पर किया जाता है।दांत के दर्द,कान का दर्द तथा शरीर के कोमल अंगों की किसी बीमारी आदि को ठीक करने में इनका प्रयोग किया जाता है।
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3. उच्च शक्ति के चुम्बक-इस प्रकार के चुम्बकों में सेरामिक चुम्बक तथा मध्यम शक्ति के चुम्बकों से अधिक शक्ति पाई जाती है। इन चुम्बकों का उपयोग वृद्ध व्यक्तियों (बड़े उम्र के लोग) के विभिन्न रोगों को ठीक करने में अधिक किया जाता है। इनका उपयोग हथेलियों तथा पैरों के तलुवों पर किया जाता है। कई पुरानी बीमारियों को ठीक करने में भी इनका प्रयोग किया जाता है। चुम्बकित जल बनाने के लिये भी इन चुम्बकों का प्रयोग किया जाता है।
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4. प्रेसीडण्ट चुम्बक-इन चुम्बकों का उपयोग बहुत अधिक मात्रा में चुम्बकित जल बनाने के लिए किया जाता है। बड़े-बूढ़े व्यक्तियों के रोगों तथा पुरानी बीमारियों को ठीक करने के लिये इन चुम्बकों का प्रयोग किया जाता है।
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