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नासा और कंठतंतुओं का बढ़ना(ADENOIDS)एवम उपचार |
इस रोग में नाक और गले की लसिका ग्रंथि सम्बंधी तंतुएं बढ़ जाती है। रोगी की तालु सूज जाती है या अधिक सर्दी लगने के कारण यह रोग बना रहता है। यह रोग 5 वर्ष की आयु से लेकर 15 वर्ष की आयु तक बराबर बढ़ता रहता है। इस रोग के लगातार बने रहने के कारण रोगी पतला हो जाता है। इस रोग के कारण सांस लेने व छोड़ने में परेशानी होती है जिसके कारण रोगी को मुंह से सांस लेना पड़ता है। रोगी को अधिक सर्दी लगती है,कान में दर्द होता है, कान से पीब आता है और साथ ही हल्के से बहरे पन के लक्षण भी उत्पन्न होने लगते हैं। इस रोग के कारण छोटी उम्र में बिस्तर पर पेशाब करने तथा नर्त्तन रोग आदि के लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं।
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रोग को ठीक करने के लिए विभिन्न लक्षणों के अनुसार औषधियों का प्रयोग :-
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आर्निका:-नाक पर किसी प्रकार का चोट लगने के कारण या गिरने के कारण खून निकलने पर आर्निका औषधि की 3x मात्रा का प्रयोग करें। इस औषधि के सेवन से नाक से खून का आना बंद होता है। नाक से खून निकलने पर अधिक लाभ के लिए आर्निका औषधि के मदरटिंचर को 20 गुने पानी में मिलाकर चोट वाली जगहों पर लगाने से भीआराम मिलता है।
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आरम-मेट :-बदबूदर सड़ा खून मिला हुआ स्राव और उसके साथ नाक की हड्डी का खुजलाना या उसमें घाव होना आदि लक्षणों में आरम-मेट औषधि की 3x विचूर्ण का प्रयोग करना लाभकारी होता है।
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आर्जेण्ट-नाइट्रिक:-अगर नाक में खुजली मचती हो तथा खुजलाने पर नाक से खून निकलने लगता हो तो ऐसे लक्षणों में आर्जेण्ट-नाइट्रिक औषधि का उपयोग करना चाहिए।
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आर्सेनिक:-नाक से स्राव होने के कारण जलन श्लेष्मा निकल रहा हो या नाक बंद रहता हो तो ऐसे में रोगी को आर्सेनिक औषधि की 6 शक्ति सेवन करना चाहिए।
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ऐलियम-सिपा:-नाक से अधिक मात्रा में जलन उत्पन्न करने वाला स्राव हो और गर्म कमरे में जाने पर छींकें आ रही हों तो इस तरह के लक्षणों में रोगी के लिए ऐनियम-सिपा औषधि की 6 शक्ति सेवन करना फायदेमंद होता है।
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ऐगरिकस:-बू़ढ़ापे के कारण नाक से खून निकलने के लक्षण दिखई देने पर ऐगरिकस औषधि की 6 शक्ति से उपचार करना अच्छा होता है। इस औषधि का प्रयोग नाक से काले रंग का बदबूदार खून स्राव होने पर भी करना हितकारी होता है।
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एपिस:-नाक फूलकर लाल हो गई हो तो उसका उपचार के लिए एपिस औषधि की 3x मात्रा या 30 शक्ति का उपयोग करना चाहिए।
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कैक्टस:- हृदय के रोग के साथ नाक से खून आने के लक्षणों में कैक्टस औषधि की 1x मात्रा का प्रयोग करना हितकारी होता है। इसके अलावा इस औषधि का प्रयोग नाक का ऐसा स्राव जो पूर्ण रूप से निकले बिना ही रुक जाता है या लगातर श्लेष्मा का स्राव होता रहता है, में किया जाता है।
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कैलि-बाइक्रोम:-इस औषधि का प्रयोग नाक से होने वाले बदबूदार पीला, लसदार बलगम निकलने पर किया जाता है। इस रोग में कैलि-बाइक्रोम औषधि की 30 शक्ति सेवन करना चाहिए। नाक के जख्मों में इस औषधि के प्रयोग करने से कभी-कभी रोगी में स्वाद की कमी हो जाती है और कभी-कभी नहीं भी होती है परन्तु इसके प्रयोग से घाव में पूर्ण लाभ मिलता है।
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कैल्के-कार्ब:-सर्दी लगने के कारण नाक से बदबूदार पीला स्राव होता है तथा रोगी हर समय किसी न किसी प्रकार के गंध महसूस करता रहता है। ऐसे लक्षणों में रोगी को कैल्के-कार्ब औषधि की 6 या 30 शक्ति का सेवन करना हितकारी होता है।
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टियुक्रियम:-चश्मा लगाने के कारण नाक में किसी प्रकार का रोग हो तो टियुक्रियम औषधि की 6 शक्ति का सेवन करना चाहिए। यदि जांच करने के बाद सही चश्मा लगने के बाद भी यदि रोग हो जाए तो भी इस औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।
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क्रोटेलस:-नाक और शरीर के अन्य अंगों से खून स्राव होने के लक्षणों में क्रोटेलस औषधि की 3 शक्ति का उपयोग करना चाहिए।
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जेलसिमियम:- सर्दी लगने के कारण नाक से अधिक मात्रा में पानी की तरह पतला स्राव होता हो और शरीर में कंपकंपी और बुखार के लक्षण दिखाई दें तो ऐसे लक्षणों में रोगी को जेलसिमियम औषधि की 2x मात्रा या 3 शक्ति का सेवन करना लाभदायक होता है।
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नक्स-वोमिका :-नाक के रोग से सम्बंधित ऐसे लक्षण जिसमें रोगी के नाक का एक छिद्र बंद हो जाता है और दूसरे छिद्र से बलगम का स्राव होता रहता है। दिन के समय नाक से पतले पानी की तरह स्राव होता है और रात को नाक बंद हो जाता है। कभी-कभी नाक से जलन उत्पन्न करने वाला स्राव होता है। इस तरह के लक्षणों में से कोई भी लक्षण हो तो रोगी को उपचार के लिए नक्स-वोमिका की 3 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।
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पल्सेटिला:- अगर नाक से हल्के पीले रंग का सा्रव होने के साथ ही ऐसे लक्षण उत्पन्न हों जिसमें रोगी को स्वाद अनुभव करने की शक्ति कम हो जाए और साथ ही गंध पहचानने की शक्ति भी कम हो जाए एवं गर्म कपड़े पहनने से नाक बंद हो जाए। इस तरह के लक्षणों से पीड़ित रोगी को पल्सेटिला औषधि की 3 शक्ति का सेवन करना चाहिए।
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मर्क्यूरियस:- नाक की हड्डियों में घाव होने के कारण नाक से गाढ़े हर रंग की पीब का स्राव हो तो ऐसे में मर्क्यूरियस औषधि की 3 शक्ति का सेवन करना लाभकारी होता है।
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सिपिया:- अगर किसी व्यक्ति के नाक से हमेशा पानी की तरह पतले स्राव होता रहता हो या हल्की सी सर्दी के कारण बलगम निकलने लगता हो तो उसे सिपिया औषधि की 30 शक्ति का सेवन कराएं।
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सिना:-यदि नाक में ऐसा महसूस जैसे कि कोई चीज अन्दर रेंग रहा है। ऐसी अनुभूति के कारण रोगी तब तक नाक को खुजलाता रहता है जब तक रेंगने की अनुभूति समाप्त नहीं हो जाती, ऐस में रोगी के नाक से खून भी निकल आता है। इस तरह के लक्षणों में रोगी को सिना औषधि की 3x मात्रा का सेवन करने से लाभ मिलता है और नाक की खुजली भी दूर हो जाती है।
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हिपर-सल्फर:-नाक में घाव होने पर हिपर-सल्फर औषधि का उपयोग करना हितकारी होता है।
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हाइड्रैस्टिस:-इस औषधि का उपयोग नाक से होने वाले स्राव को रोकने के लिए किया जाता है। नाक से स्राव होने के ऐसे लक्षण जिसमें नाक से पानी की तरह पीले या हरे रंग की बदबूदार बलगम का स्राव होता है और यह स्राव जिस भाग पर लगताहै वहां की त्वचा छील जाती है। रोगी को हमेशा ऐसा लगता है जैसे बलगम नाक के पिछले भाग से गले में गिर रहा है और कभी-कभी नाक के दोनों छिद्र के बीच की हड्डी में घाव हो जाता है। इस तरह के लक्षणों से पीड़ित रोगी को हाइड्रोस्टिम औषधि की 1x या 3 शक्ति का उपयोग करना चाहिए। इस औषधि के प्रयोग से स्राव बंद होता है और घाव आदि में पूर्ण लाभ मिलता है।
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